The legend tanaji short history

Tanhaji Malusare, also known as Tanaji, was a legendary Maratha warrior who played a pivotal role in the battle for the Kondana Fort against the Mughals in the 17th century. He is widely regarded as a national hero in India and is remembered for his courage, leadership, and selfless sacrifice. Here is a history of Tanhaji Malusare:

Early Life:


Tanhaji Malusare was born in a Maratha family in the village of Umrathe in the present-day Raigad district of Maharashtra in 1600. His father, Sardar Kaloji Malusare, was a commander in the army of Maratha ruler, Shivaji Maharaj. Tanhaji was trained in the art of warfare and swordsmanship from a young age, and he soon became a skilled warrior.


Military Career:


Tanhaji Malusare joined the Maratha army at the age of 16 and quickly rose through the ranks due to his bravery and leadership skills. He fought in several battles alongside Shivaji Maharaj, including the Battle of Purandar in 1665, where he was instrumental in capturing the fort from the Mughals.


The Battle of Kondana:


In 1670, the Mughal emperor, Aurangzeb, ordered his army to capture the Kondana Fort near Pune, which was under the control of Shivaji Maharaj. The fort was strategically located and was an important stronghold for the Marathas. Shivaji entrusted the task of defending the fort to Tanhaji Malusare, who accepted the challenge without any hesitation.


Tanhaji Malusare and his army, which consisted of only 300 soldiers, set out to defend the fort against a much larger Mughal army led by Udaybhan Rathod, a Rajput commander. Tanhaji devised a clever plan to attack the Mughals by climbing the steep cliffs that surrounded the fort, using ropes made from twisted grass.


On the night of 4 February 1670, Tanhaji and his soldiers launched a surprise attack on the Mughal army, and after a fierce battle, they managed to capture the Kondana Fort. However, Tanhaji was fatally wounded in the battle and died on the battlefield. His last words to his soldiers were, "Do not mourn for me. The fort has been won. That is all that matters."

Legacy:


Tanhaji Malusare's bravery and sacrifice in the battle for the Kondana Fort have made him a revered figure in Indian history. He is remembered as a true patriot who put his duty towards his country above everything else. Shivaji Maharaj is said to have mourned Tanhaji's death and honored him with the title of "Sinha" (lion) posthumously.


In recent times, Tanhaji's story has gained widespread popularity, thanks to the Bollywood movie "Tanhaji: The Unsung Warrior" starring actor Ajay Devgn in the lead role. The movie depicts Tanhaji's heroism and sacrifice and has helped to bring his story to a wider audience.


Conclusion:


Tanhaji Malusare's story is a testament to the bravery and sacrifice of the Maratha warriors who fought for the independence and sovereignty of India. He remains an inspiration to generations of Indians and is a symbol of courage and patriotism. His memory is celebrated every year on the day of his death, 4 February, as "Tanhaji Jayanti" in Maharashtra.

Hindi 

तानाजी मालुसरे, जिन्हें तानाजी के नाम से भी जाना जाता है, एक प्रसिद्ध मराठा योद्धा थे जिन्होंने 17वीं शताब्दी में मुगलों के खिलाफ कोंडाना किले की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें व्यापक रूप से भारत में एक राष्ट्रीय नायक के रूप में माना जाता है और उन्हें उनके साहस, नेतृत्व और निस्वार्थ बलिदान के लिए याद किया जाता है। तान्हाजी मालुसरे का विस्तृत इतिहास इस प्रकार है:

प्रारंभिक जीवन:

तान्हाजी मालुसरे का जन्म 1600 में महाराष्ट्र के वर्तमान रायगढ़ जिले के उमराठे गाँव में एक मराठा परिवार में हुआ था। उनके पिता, सरदार कलोजी मालुसरे, मराठा शासक शिवाजी महाराज की सेना में एक कमांडर थे। तन्हाजी को छोटी उम्र से ही युद्ध कला और तलवार चलाने की कला में प्रशिक्षित किया गया था, और वे जल्द ही एक कुशल योद्धा बन गए।

सैन्य वृत्ति:

तन्हाजी मालुसरे 16 साल की उम्र में मराठा सेना में शामिल हो गए और अपनी बहादुरी और नेतृत्व कौशल के कारण तेजी से आगे बढ़े। उन्होंने 1665 में पुरंदर की लड़ाई सहित शिवाजी महाराज के साथ कई लड़ाइयां लड़ीं, जहां उन्होंने मुगलों से किले पर कब्जा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

कोंडाना की लड़ाई:

1670 में, मुगल सम्राट औरंगजेब ने अपनी सेना को पुणे के पास कोंडाना किले पर कब्जा करने का आदेश दिया, जो शिवाजी महाराज के नियंत्रण में था। किला रणनीतिक रूप से स्थित था और मराठों के लिए एक महत्वपूर्ण गढ़ था। शिवाजी ने किले की रक्षा का काम तान्हाजी मालुसरे को सौंपा, जिन्होंने बिना किसी झिझक के चुनौती स्वीकार कर ली।

तन्हाजी मालुसरे और उनकी सेना, जिसमें केवल 300 सैनिक शामिल थे, एक राजपूत सेनापति उदयभान राठौड़ के नेतृत्व वाली एक बहुत बड़ी मुगल सेना के खिलाफ किले की रक्षा के लिए निकल पड़े। तान्हाजी ने मुड़ी हुई घास से बनी रस्सियों का उपयोग करते हुए, किले को घेरने वाली खड़ी चट्टानों पर चढ़कर मुगलों पर हमला करने की एक चतुर योजना तैयार की।

4 फरवरी 1670 की रात को, तन्हाजी और उनके सैनिकों ने मुगल सेना पर एक आश्चर्यजनक हमला किया, और एक भयंकर युद्ध के बाद, वे कोंडाना किले पर कब्जा करने में कामयाब रहे। हालाँकि, तानाजी युद्ध में बुरी तरह से घायल हो गए और युद्ध के मैदान में ही उनकी मृत्यु हो गई। अपने सैनिकों के लिए उनके अंतिम शब्द थे, "मेरे लिए शोक मत करो। किला जीत लिया गया है। बस यही मायने रखता है।"

परंपरा:

कोंडाना किले की लड़ाई में तान्हाजी मालुसरे की वीरता और बलिदान ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति बना दिया है। उन्हें एक सच्चे देशभक्त के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य को सबसे ऊपर रखा। कहा जाता है कि शिवाजी महाराज ने तन्हाजी की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया और उन्हें मरणोपरांत "सिंह" (शेर) की उपाधि से सम्मानित किया।

हाल के दिनों में, तन्हाजी की कहानी ने व्यापक लोकप्रियता हासिल की है, बॉलीवुड फिल्म "तानाजी: द अनसंग वॉरियर" की बदौलत अभिनेता अजय देवगन ने मुख्य भूमिका निभाई है। फिल्म में तानाजी की वीरता और बलिदान को दर्शाया गया है और इसने उनकी कहानी को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने में मदद की है।

निष्कर्ष:

तान्हाजी मालुसरे की कहानी भारत की स्वतंत्रता और संप्रभुता के लिए लड़ने वाले मराठा योद्धाओं की बहादुरी और बलिदान का एक वसीयतनामा है। वह भारतीयों की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं और साहस और देशभक्ति के प्रतीक हैं। उनकी स्मृति में हर साल उनकी मृत्यु के दिन 4 फरवरी को महाराष्ट्र में "तान्हाजी जयंती" के रूप में मनाया जाता है।


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